Tuesday, January 5, 2010

MBA के सिद्धांत


आजकल युवा पीढ़ी का सबसे ज्यादा जोर MBA की डिग्री प्राप्त करने की ओर है. किसी भी उद्योग और व्यापर के सफल सञ्चालन के लिए इस डिग्री के धारकों की आवश्यकता पूरी दुनिया को है। यही कारण है कि डॉक्टर, इंजिनियर और प्रशासनिक अधिकारी भी नौकरी छोड़कर MBA करने का प्रयास कर रहे हैं। ताकि मानव संसाधन के अंतर-राष्ट्रीय बाज़ार में आकर्षक पैकेज MBA कर सकें अथवा अपना कारोबार कर सकें। एक दौर था जब भारत में सरकारी नौकरी प्राप्त करना किसी भी युवक की योग्यता का पैमाना माना जाता था। सबसे प्रतिभाशाली युवक डॉक्टर, इंजिनियर या फिर प्रशासनिक अधिकारी बनने की कोशिश करते थे। आज स्थिति बदल गयी है। आज प्रतिभाशाली युवक सरकारी नौकरी प्राप्त करने के बजाय अपना उद्योग स्थापित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं। यदि किसी कारणवश वे सफल नहीं हो पाते तो किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में नौकरी करना पसंद करते हैं। इसका कारण ये है की सरकारी नौकरी में बिना भ्रष्टाचार के कोई भी व्यक्ति आधुनिक सुख-सुविधा के साधनों को एकत्र नहीं कर सकता और आज अधिकांश युवक खुद को भ्रष्ट कहलाना पसंद नहीं करते। इसलिए अपना उद्योग व्यापार चलाने और बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी प्राप्त करने के लिए mba कि शिक्षा आवश्यक मानी जाने लगी है।

सवाल ये है कि MBA में ऐसा क्या सिखाया जाता है जो किसी भी क्षेत्र में सफलता का मूल-मंत्र बन जाता है। इसका सीधा सा जवाब है कि झूठ पर टिकी हुई दुनिया में सफलता प्राप्त करने के लिए कितना सच बोलना जरूरी है, इसकी समझ MBA कि पढाई से प्राप्त होती होती है MBA की शिक्षा के तीन महत्त्वपूर्ण अंग हैं। पहला- मानव संसाधन मैनेजमेंट, दूसरा- उपभोक्ता मैनेजमेंट और तीसरा वित्तीय मैनेजमेंट। इन तीनों का मैनेजमेंट पूर्ण सत्य बोलकर नहीं किया जा सकता, इसकी जानकारी हमें MBA की पढाई से प्राप्त होती है। सवाल ये है कि झूठ पर संचालित दुनिया में आधा सत्य बोलने की क्या आवश्यकता है। इसका सीधा सा उत्तर है कि भूमंडलीकरण और उदारीकरण के इस दौर में वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से पूरी दुनिया में पारदर्शिता बढ़ रही है। आवागमन के साधन और सूचना तकनीक ने तो वास्तव में पूरी दुनिया को एक परिवार के रूप में बदल दिया है, जिसकी चर्चा भारतीय संस्कृति में 'वसुधैव कुटुम्बकम' के रूप में बहुत पहले से होती रही है। शायद प्राचीन भारत में भी आवागमन और सूचना तकनीक का विकास इस सीमा तक हो चुका था। इसलिए इक्कीसवीं सदी में पूरी तरह झूठ पर आधारित उद्योग एवं व्यापार का संचालन संभव नहीं है। इसकी वजह से आज MBA प्रोफेशनल और CA की मांग बढ़ रही है, जो झूठ को इस अंदाज में पेश करते हैं कि वह सच दिखाई देने लगता है। लेकिन इसके लिए उनको एक सीमा तक सच बोलना आवश्यक होता है, जिसे उद्योग और व्यापर की भाषा में एथिक्स कहा जाता है। इस एथिक्स को ही सामाजिक व्यव्हार में 'नैतिकता ' का नाम दिया गया है।

इस स्थिति में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है की क्या MBA में पढाई जाने वाली अर्ध सत्य बोलने की कला पारिवारिक जीवन पर भी लागू हो सकती है? इस प्रश्न को इस तरह से भी पूछा जा सकता है कि क्या अपने प्रोफेशन में अत्यंत सफल सिद्ध होने वाला प्रोफेशनल पारिवारिक जीवन में भी सफल हो सकता है। इसका स्पष्ट उत्तर नकारात्मक है। परिवार एक ऐसी संस्था है जिसकी सफलता के लिए इसके सदस्यों के बीच संबंधों में पूर्ण सत्य का होना अत्यंत आवश्यक है। परिवार में यदि व्यापर एवं उद्योग के अनुभवों को अपनाने के प्रयास किये गए तो उसके परिणाम अत्यंत घातक सिद्ध होते हैं। पारिवारिक संबंधों में झूठ के लिए कोई स्थान नहीं है। झूठ का प्रवेश होते ही पारिवारिक संबंधों में अविश्वास एवं आशंका उत्पन्न होने लगती है, जो अंतत: परिवार को विघटन की ओर ले जाती है।

यह वास्तविकता एवं सच्चाई है किपरिवार का सञ्चालन सनातन धर्म के जीवन मूल्यों के आधार पर ही किया जा सकता है जो अनंत काल से चले आ रहे हैं एवं अनंत काल तक चलते रहेंगे। किसी भी परिवार की सफलता का मूल आधार होता है दुसरे की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी को तलाश करना। माँ स्यवं भूखी रहकर बच्चे को भोजन करने में आत्मसंतुष्टि का अनुभव करती है। पति को विश्वास होता है कि उसके द्वारा अर्जित किया गया धन उसकी पत्नी के हाथों में सुरक्षित है, पत्नी को विश्वास होता है कि उसका पति अपनी कमी की एकएक पाई घर की सुख समृद्धि एवं मान मर्यादा पर खर्च कर रहा है। इसलिए वह लम्बे समय तक पति से दूरी को भी आसानी से बर्दाश्त कर लेती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि म्बा के सिद्धांतों को परिवार पर लागू करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए क्योंकि ऐसा करने के परिणाम कभी भी सुखद नहीं हो सकते। परिवार का आस्तित्व त्याग, ममता, प्यार एवं अपनेपन के स्तंभों पर टिका होता है। अत वहां अर्ध सत्य अथवा फरेब का कोई स्थान नहीं होता है। यही जमीनी सच्चाई है।

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