Saturday, January 16, 2010

महिलाओं के लिए कैरियर जरूरी है या परिवार?

आज समाज में कामकाजी महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह से स्वयं महिलाओं एवं परिवार संस्था पर काफी दबाव बढ़ गया है। एक महिला जब नौकरी करती है तब उसे दोहरी जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ता है। दोहरी जिम्मेदारी के कारण वह घर-परिवार के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह सफलतापूर्वक नहीं कर पाती। इसके परिणामस्वरूप परिवार में तनाव एवं नाना प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होती हैं। घर की बहू जब नौकरी पर निकलती है तो वह अपने बच्चों की सही तरीके से परवरिश नहीं कर पाती, अपने सास-ससुर की आवश्यकताओं को पूरा करना उसे बोझ लगने लगता है। यही कारण है कि महानगरों में जहां काम-काजी महिलाओं की संख्या अधिक है वहां परिवार तेजी से टूट रहे हैं। बच्चों को जो संस्कार मिलने चाहिए वे मिल नहीं पाते, बच्चे मानसिक रूप से बीमार होने लगे हैं, जिसकी वजह से बच्चों का व्यवहार बड़ा ही अटपटा व असामान्य होने लगा है। उनको नशे, अपराध, अनैतिक सम्बन्ध इत्यादि की ओर कदम बढ़ाने का अवसर आसानी से प्राप्त हो रहा है।

इस स्थिति में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि महिलाओं के लिए कैरियर महत्वपूर्ण है या परिवार?क्या उन्हें कैरियर के निर्माण के लिए अपने परिवार को दाव पर लगा देना चाहिए? इस सवाल का उत्तर बड़ा आसान हो जायेगा यदि हम दूसरा सवाल पूछें कि कैरियर का निर्माण करने की आवश्यकता क्यों है? क्या अपने कैरियर को बना कर तथा अपने परिवार से अलग होकर कोई महिला सुखी हो सकती है?क्या अपने बच्चे का भविष्य दाव पर लगाकर अपने कैरियर की चकाचैंध में कोई महिला जीवन में प्रसन्नता एवं आनंद का अनुभव कर सकती है। उत्तर बड़ा आसान है-ऐसा कदापि संभव नहीं है। अपने कैरियर को संवारने के प्रयास में परिवार एवं समाज से कटे हुए लोग जीवन के आखिरी पड़ाव में अपने आपको नितांत अकेला अनुभव करते हैं। फिल्मी दुनिया की चकाचैंध में अनेक अभिनेत्रियों की दुःख भरी कहानी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। यही कारण है कि सफलता के नए आयाम स्थापित करने वाली अभिनेत्रियां असुरक्षा बोध के कारण तमाम मर्यादाओं को दरकिनार करते हुए विवाहित पुरुषों से विवाह करने को प्राथमिकता प्रदान कर रही हैं।

इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि महिलाओं को अपने कैरियर के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए। इसका मतलब यह भी नहीं है कि घर-परिवार की देखभाल करनी है तो महिलाओं को ऊँची शिक्षा एवं कैरियर के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए। वास्तव में विवाह से पूर्व किसी भी लड़की को ऊँची शिक्षा तो प्राप्त करनी ही चाहिए पर विवाह के बाद किसी कैरियर को अपनाने से पहले मां-बाप की अनुमति लेनी चाहिए। सबसे अच्छी बात तो यह होगी कि विवाह करने के बाद ही कैरियर के बारे में विचार करना चाहिए। यदि परिवार में उसके नवजात शिशु अथवा बुजुर्गों की देखरेख करने वाला कोई है तो कोई भी महिला आसानी से नौकरी कर सकती है। इसके विपरीत यदि नौकरी करने के लिए अपने बच्चे को क्रेच या नौकरानी के भरोसे छोड़ना पड़ता है, या घर में बुजुर्गों को नौकर के भरोसे छोड़ना पड़ता है तो उसे कभी भी नौकरी अथवा कैरियर को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए।

एक समय आता है जब बच्चों के पालन-पोषण का दायित्व समाप्त हो जाता है और बुजुर्ग स्वर्गवासी हो जाते हैं तब महिला अपने कैरियर के बारे में सोच सकती है। परिवार की आर्थिक स्थिति, पति के 'प्रोफेशन' एवं अपनी व्यस्तता को ध्यान में रखते हुए वह अपने लिए कोई भी उपयुक्त कार्य अथवा नौकरी आसानी से तलाश कर सकती है। इस अवस्था में भी यदि महिला के पास कोई कार्य नहीं है एवं वह सम्पन्न परिवार की है तो उसे किटी पार्टी, गप-शप में अपना समय बरबाद करने की बजाय अपनी रुचि एवं योग्यता के अनुरूप ऐसा कार्य हाथ में लेना चाहिए जो उसे संतुष्टि प्रदान कर सके एवं परिवार तथा समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके।

कहने का तात्पर्य यह है कि महिलाओं का दायित्व एक पुरुष की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील है। उसे समय, परिस्थिति तथा परिवार की आवश्यकता के अनुसार निर्णय लेना चाहिए। जो महिला सामयिक निर्णय लेने में सफल हो जाती है वह परिवार की प्रगति के साथ-साथ प्रसन्नता एवं आनंद का अनुभव करती है एवं जो ऐसा करने में असफल सिद्ध होती है उसे न केवल नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है बल्कि उसका परिवार भी बिखर जाता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि किसी भी महिला को कैरियर एवं परिवार में से एक को चुनने के बजाय परिवार की परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेना चाहिए। वास्तव में कैरियर एवं परिवार एक दूसरे के विकल्प की बजाय एक दूसरे के पूरक हैं।

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