कहते हैं कि जब पैसा आता है तो अपने साथ अनेक प्रकार की बुराइयाँ भी लेकर आता है। शायद यही कारण है कि समाज के बहुत सारे परिवारों द्वारा अपनी कमाई का एक अंश मानवसेवा एवं परोपकार के कार्यों में खर्च किया जाता है, जिससे पैसे के साथ आने वाली बीमारियाँ घर के अन्दर प्रवेश न कर सकें। आखिर क्या कारण है कि कुछ परिवारों में अनेक पीढ़ियों तक सुख- समृद्धि की वर्षा होती रहती है जबकि कुछ परिवारों कि सफलता एक पीढ़ी तक भी साथ नहीं देती है। इसी भावना से प्रेरित होकर 'महाराजा अग्रसेन रामायण अध्ययन केंद्र' द्वारा स्थाई सफलता का एक कैलेंडर तैयार किया गया है।
तुलसी दासजी ने लिखा है कि 'मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक, पाले पोसे सकल अंग तुलसी सहित विवेक ' अर्थात परिवार के मुखिया को मुख के सामान होना चाहिए, जो खाता तो अकेले है, लेकिन उसका लाभ शारीर के सभी अंगों तक पहुचता है। भगवान राम एक परिवार एवं राज्य सञ्चालन का आदर्श स्रोत है। जिस घर में मुखिया कि बात को सभी लोग सिर झुकाकर स्वीकार करते हैं एवं मुखिया कोई भी निर्णय लेने से पहले परिवार के सभी सदस्यों से विचार विमर्श करना आवश्यक समझता है, उस परिवार में प्रवेश करने के बाद सुख-समृद्धि हिलने का नाम नहीं लेती। इसके साथ ही मनोरंजन एवं खान-पान में कुछ नियमों एवं मर्यादाओं का होना आवश्यक है। परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करें, पर्वों-त्योहारों को सभी साथ-साथ मिलकर हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाएं, सभी एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें। जिस परिवार के सदस्य स्वयं खाने के बजाय दूसरों को खिलाने में आनंद का अनुभव करें वहां सफलता स्थाई रहती है एवं धीरे-धीरे बहु आयामी बनती चली जाती है।
इस सम्बन्ध में भारत के कई परिवारों का उदहारण लिया जा सकता है। इनमें फिल्मी दुनिया से राज कपूर परिवार, उद्योग जगत से टाटा, बिरला परिवार, राजनितिक क्षेत्र से नेहरु परिवार प्रमुख हैं। इन सभी परिवारों ने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी मर्यादा और गौरव को बनाये रखा। इस तरह के परिवारों में सभी को अपने अधिकार और कर्त्तव्य का अच्छी तरह ज्ञान होता है, जिससे वे एक-दूसरे के प्रतियोगी बन ने के बजाय सहयोगी बन जाते हैं। इसके विपरीत हमने अम्बानी परिवार की प्रगति और विभाजन को अपनी आँखों से देखा है। इसलिए परिवार में सफलता को स्थाई बनाने के लिए सकारात्मक मनोरंजन, परंपरा एवं रीती-रिवाजों का पालन, संत और गुरुओं का सम्मान, योग, ध्यान एवं प्राणायाम का अभ्यास आदि होना बेहद जरुरी है। ऐसा होने से परिवार के सदस्यों के मन में शांति का निवास होता है एवं कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे एक-दूसरे पर विश्वास बनाये रखते हैं। भगवान राम पिता कि आज्ञा का पालन करते हुए जंगल में रहते हैं, फिर भी उनको अपनी विमाता कैकेयी पर यकीन है कि इसमें उनकी कोई न कोई भलाई ही छिपी होगी। राम के इसी विश्वास का परिणाम था कि तमाम विपत्ति एवं बाधा का सामना करने के बावजूद वे राम राज कि स्थापना करने में सफल रहे।
परिवार में स्थाई सफलता होने पर, विश्वास का वातावरण बन ने पर घर-परिवार ही स्वर्ग बन जाता है एवं परिवार के सभी सदस्यों को मानव जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता प्राप्त होती है। परिवार में सुख शांति होने पर आदर्श जीवन मूल्य, गीता का निष्काम कर्म योग अनायास ही हमारे जीवन का अंग बन जाते हैं। परोपकार में सुख मिलने लगता है, कथा एवं सत्संग में मन लगता है, किसी की शिकायत सुन ने या करने कि इच्छा नहीं होती और किसी भी विपत्ति के समय परिवार के सभी सदस्य एकजुट होकर उसका सामना करते हैं।
तुलसी दासजी ने लिखा है कि 'मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक, पाले पोसे सकल अंग तुलसी सहित विवेक ' अर्थात परिवार के मुखिया को मुख के सामान होना चाहिए, जो खाता तो अकेले है, लेकिन उसका लाभ शारीर के सभी अंगों तक पहुचता है। भगवान राम एक परिवार एवं राज्य सञ्चालन का आदर्श स्रोत है। जिस घर में मुखिया कि बात को सभी लोग सिर झुकाकर स्वीकार करते हैं एवं मुखिया कोई भी निर्णय लेने से पहले परिवार के सभी सदस्यों से विचार विमर्श करना आवश्यक समझता है, उस परिवार में प्रवेश करने के बाद सुख-समृद्धि हिलने का नाम नहीं लेती। इसके साथ ही मनोरंजन एवं खान-पान में कुछ नियमों एवं मर्यादाओं का होना आवश्यक है। परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करें, पर्वों-त्योहारों को सभी साथ-साथ मिलकर हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाएं, सभी एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें। जिस परिवार के सदस्य स्वयं खाने के बजाय दूसरों को खिलाने में आनंद का अनुभव करें वहां सफलता स्थाई रहती है एवं धीरे-धीरे बहु आयामी बनती चली जाती है।
इस सम्बन्ध में भारत के कई परिवारों का उदहारण लिया जा सकता है। इनमें फिल्मी दुनिया से राज कपूर परिवार, उद्योग जगत से टाटा, बिरला परिवार, राजनितिक क्षेत्र से नेहरु परिवार प्रमुख हैं। इन सभी परिवारों ने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी मर्यादा और गौरव को बनाये रखा। इस तरह के परिवारों में सभी को अपने अधिकार और कर्त्तव्य का अच्छी तरह ज्ञान होता है, जिससे वे एक-दूसरे के प्रतियोगी बन ने के बजाय सहयोगी बन जाते हैं। इसके विपरीत हमने अम्बानी परिवार की प्रगति और विभाजन को अपनी आँखों से देखा है। इसलिए परिवार में सफलता को स्थाई बनाने के लिए सकारात्मक मनोरंजन, परंपरा एवं रीती-रिवाजों का पालन, संत और गुरुओं का सम्मान, योग, ध्यान एवं प्राणायाम का अभ्यास आदि होना बेहद जरुरी है। ऐसा होने से परिवार के सदस्यों के मन में शांति का निवास होता है एवं कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे एक-दूसरे पर विश्वास बनाये रखते हैं। भगवान राम पिता कि आज्ञा का पालन करते हुए जंगल में रहते हैं, फिर भी उनको अपनी विमाता कैकेयी पर यकीन है कि इसमें उनकी कोई न कोई भलाई ही छिपी होगी। राम के इसी विश्वास का परिणाम था कि तमाम विपत्ति एवं बाधा का सामना करने के बावजूद वे राम राज कि स्थापना करने में सफल रहे।
परिवार में स्थाई सफलता होने पर, विश्वास का वातावरण बन ने पर घर-परिवार ही स्वर्ग बन जाता है एवं परिवार के सभी सदस्यों को मानव जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता प्राप्त होती है। परिवार में सुख शांति होने पर आदर्श जीवन मूल्य, गीता का निष्काम कर्म योग अनायास ही हमारे जीवन का अंग बन जाते हैं। परोपकार में सुख मिलने लगता है, कथा एवं सत्संग में मन लगता है, किसी की शिकायत सुन ने या करने कि इच्छा नहीं होती और किसी भी विपत्ति के समय परिवार के सभी सदस्य एकजुट होकर उसका सामना करते हैं।
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