Thursday, January 14, 2010

हमारे आदर्श कौन हैं?

संस्कृत की उक्ति है- "महाजनः येन गता स पंथा" अर्थात् महापुरुष जिस रास्ते से जाते हैं वही रास्ता है। आज समाज में नकारात्मक खबरों की भरमार है। विभिन्न संचार माध्यमों अथवा भ्रष्ट रीति एवं नीति से अर्थोपार्जन करते देश के नेताओं से समाज में इस धारणा का विकास हो रहा है कि बिना भ्रष्टाचार एवं चोरी के जीवन में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। वास्तव में इस प्रकार की सोच समाज के लिए बड़ी ही घातक है कि ईमानदारी एवं सच्चाई के साथ जीवन जीना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है। टी.वी. धारावाहिकों एवं फिल्मों के माध्यम से भी समाज में यही धारणा विकसित हो रही है कि कम मेहनत में अधिक दौलत इकट्ठा करने के लिए भ्रष्ट अथवा गलत रास्ता अख्तियार करना ही पड़ता है। आज जो नेतागण देश का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके प्रति धारणा बन चुकी है कि वे जीतने के लिए कुछ भी कर सकते हैं एवं उनके जीवन में आदर्शों एवं जीवन मूल्यों का नितांत अभाव है। आज हमारे लिए खिलाड़ी एवं फिल्मी अभिनेता आदर्श बन चुके हैं, उनके ऑटोग्राफ प्राप्त करना एवं उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए हमारी युवा पीढ़ी पागल दिखाई देती है, यदि मनोरंजन के पहलू को हटा दिया जाय तो एक खिलाड़ी एवं अभिनेता का समाज के लिए क्या योगदान है? इसके विपरीत हमारे आस-पास ऐसे लोगों की संख्या हजारों में है जो अपने उद्योग एवं व्यापार के माध्यम से न केवल हजारों लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं, बल्कि मानव सेवा की भावना से प्रेरित होकर अनेक स्कूल, कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, मैनेजमेंट कॉलेज, हॉस्पिटल, धर्मशाला, अनाथाश्रम, बाल गृह इत्यादि का संचालन करते हुए हमारे सामने जीवन का एक आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं।

हम आज तक जितने भी सफल व्यक्तियों से मिले हैं, उनके जीवन में कोई न कोई सिद्धांत एवं जीवन मूल्य अवश्य रहा है। ऐसे लोग ही समाज-रूपी नींव की ईंट हैं, जो बिना किसी चर्चा के अपना कार्य करते रहते हैं। महाराजा अग्रसेन रामायण अध्ययन केन्द्र के माध्यम से हम ऐसे लोगों के जीवन को समाज के सामने लाना चाहते हैं, जिससे लोग उनको अपना आदर्श मानते हुए उनके नक्शे कदम पर चलने का प्रयास कर सकें। इस सम्बन्ध में हम समाज के 50 से अधिक लोगों का विस्तृत साक्षात्कार कर चुके हैं जो एक पुस्तक के रुप में शीघ्र ही आपके सामने प्रस्तुत की जायेगी। एक दौर था जब महात्मा गांधी, विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह एवं चन्द्रशेखर आजाद आदि का जीवन हमारी युवा पीढ़ी का आदर्श हुआ करता था। लेकिन आज की युवा पीढ़ी उनको अपना आदर्श मानने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसका मानना है कि त्याग, बलिदान, परोपकार, देश.भक्ति इत्यादि की बातें केवल पुस्तकों में मिलती हैं। वह जमाना और था जब महात्मा गांधी एवं सुभाष चन्द्र बोस जैसे लोग पैदा होते थे एवं वैसे महापुरुष समाज के लिए आदर्श होते थे। आज तो सफलता की पूजा होती है चाहे वह सफलता जैसे भी प्राप्त की जाए। आज सफलता का मापदंड सिर्फ पैसा है। जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है वह उतना ही सफल माना जाता है। इस बात को कोई नहीं देखता है कि वह पैसा किस प्रकार अर्जित किया गया है।

"समाज के आदर्श व्यक्तित्व" पुस्तक के माध्यम से हम युवा पीढ़ी की इस धारणा को बदलने का प्रयास करना चाहते हैं कि आज भी हमारे बीच ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है, जिन्होंने अपने सिद्धान्तों एवं जीवन मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। इनके जीवन आदर्शों से हमारी युवा पीढ़ी यह भी समझने में सफल होगी कि गलत तरीकों से हासिल की गई सफलता अस्थाई होती है एवं जहां भी स्थाई सफलता होती है वहां कोई न कोई आदर्श एवं सिद्धान्त अवश्य छिपा होता है। आज समाज के सामने उन्हें लाने की आवश्यकता है। इस पुस्तक के माध्यम से हम यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि मानव जीवन की सफलता केवल प्रसिद्ध या चर्चित होने में ही नहीं है। जीवन की सफलता हमारे परिवार, हमारे सम्बन्धों, हमारे जीवन मूल्यों पर भी निर्भर करती है। आज भी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जिन लोगों ने लोकप्रियता की बुलंदियों को छुआ है उनके पीछे कोई न कोई आदर्श एवं जीवनमूल्य अवश्य रहे हैं, चाहे वह राजनीति हो या खेल, सिनेमा हो या उद्योग, व्यापार हो या समाज सेवा। यदि आप भी किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जिनके व्यावहारिक जीवन से समाज को संदेश मिल सकता हो, तो उसके बारे में हमें अवश्य सूचित करें। हम उनके आदर्शों एवं सिद्धान्तों को समाज के सामने लाने का प्रयास करेंगे, जिससे हमारी युवा पीढ़ी प्रेरणा एवं अनुभव प्राप्त कर सके कि शाश्वत जीवन मूल्यों का महत्व किसी भी युग में समाप्त नहीं होता।

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