Friday, January 29, 2010

विवाह: स्थाई मित्रता है


वर्तमान समय में विवाह संस्कार को युवा पीढ़ी द्वारा बड़ी गम्भीर चुनौती मिल रही है। अब किसी के साथ जीवन व्यतीत करने के लिए विवाह आवश्यक नहीं माना जाने लगा है। लिव-इन-रिलेशनशिप में यदि दो व्यक्ति एक दूसरे को पसंद करते हैं तो वे बिना विवाह किए भी एक घर में रह सकते हैं। अब तो लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने की बहस भी चलने लगी है। युवा पीढ़ी की इस सोच को नकारा नहीं जा सकता कि साथ रहने के लिए एक-दूसरे को जानना एवं पसंद करना आवश्यक है। युवा पीढ़ी को यह भी समझना एवं स्वीकार करना होगा कि विवाह एक स्थाई मित्रता है, जिसको तोड़ना इतना आसान नहीं है जितना अन्य तरह की मित्रता को तोड़ना। व्यक्ति का जीवन बड़ा ही सीमित है इसका उद्देश्य केवल अर्थ एवं काम की प्राप्ति नहीं बल्कि धर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति भी है। इसलिए अपने जीवन के अमूल्य क्षणों को हम सम्बन्धों को आजमाने में बरबाद नहीं कर सकते। किसी भी व्यक्ति का जब वैवाहिक जीवन टूटता है तो न केवल उसे बल्कि उसके बच्चों, मित्रों एवं सम्बन्धियों को भी मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जिससे थोड़ी-सी सावधानी बरतने पर आसानी से बचा जा सकता है।

आजकल स्त्री-पुरुष की समानता की बात काफी की जाती है। लेकिन हमें इस बात को समझना होगा कि विवाह की सफलता परिवार की सफलता के लिए आवश्यक है। किसी भी संस्था की सफलता के लिए उसके सदस्यों के बीच अधिकार एवं कर्तव्यों का समुचित विभाजन एवं समझ का होना जरूरी है। परिवार में एक मुखिया का होना आवश्यक है जिसके द्वारा सभी सदस्यों की भावनाओं एवं विचारों को महत्व देते हुए निर्णय किया जाना चाहिए। समाज में कोई ऐसी संस्था नहीं है जहां किसी एक व्यक्ति को निर्णय लेने का अंतिम अधिकार न हो। इसलिए स्त्री-पुरुष की समानता एक सीमा तक ही हो सकती है। अंततः इसमें से किसी के पास 51 प्रतिशत तो किसी के पास 49 प्रतिशत अधिकारों में अंतर का होना परिवार के सफल संचालन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यह जरूरी नहीं है कि 51 प्रतिशत अधिकार पति के पास ही हो, जीवनशैली के आधार पर यह अधिकार पत्नी को भी प्राप्त हो सकता है। इसे हम पारिवारिक जीवन की सफलता का वैज्ञानिक पक्ष कह सकते हैं।

विवाह के सूत्र में आजीवन बंधे रहने के लिए व्यक्ति के जीवन में मर्यादा का होना अत्यन्त आवश्यक है। शारीरिक आकर्षण एक समय के बाद समाप्त हो जाता है। उस समय पति-पत्नी के सम्बन्ध को मजबूती देने का काम सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक मर्यादायें करती हैं। प्रायः देखने में आता है कि वैवाहिक सम्बन्ध बिल्कुल टूटने की कगार पर पहुंच कर, बच्चों के प्रति लगाव एवं उनके भविष्य के कारण बच जाते हैं। एक समय आता है जब बच्चे मां-बाप के बीच में पुल का काम करते हैं। ऐसा भी देखने को मिलता है कि अलग हो चुके मां-बाप बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कर पुनः साथ रहने का निर्णय करते हैं।

यह मानकर चलना कि भारत की प्राचीन वैवाहिक परम्परा सर्वश्रेष्ठ है एवं उसमें परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं है, उचित नहीं है। साथ ही यह भी मानना गलत है कि भारतीय वैवाहिक परम्परा पुरानी पड़ चुकी है। पाश्चात्य जीवन शैली को अपनाना ही एकमात्र विकल्प है। वास्तव में आवश्यकता है भारतीय वैवाहिक परम्परा को वर्तमान समय की चुनौतियों के अनुसार परिवर्तित करने की। विवाह में युवक-युवती की पसंद सर्वाधिक महत्वपूर्ण है लेकिन इस सम्बन्ध के लिए माता-पिता की सहमति एवं आशीर्वाद का होना भी आवश्यक है। मां-बाप को अपनी संतान की पसंद को नकारने की बजाय यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि उसकी संतान अपनी पसंद के रिश्ते के साथ भावी जीवन की चुनौतियों पर भी विचार करे तत्पश्चात् किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुँचे। मां.बाप को बच्चों को यह समझाने का प्रयास करना कि वे तो समाज की मर्यादा को ठोकर मार सकते हैं, पर उनकी संतान को समाज में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, उन्हें जिन सवालों से जूझना पड़ेगा उसका जवाब कौन देगा? युवकों को यह भी विचार करना चाहिए कि वे जिसके साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं अथवा बिना विवाह की मित्रता स्थापित कर एक दूसरे के साथ जीवन जीना चाहते हैं, क्या वे एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करने के दौरान आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं? युवा पीढ़ी की यह सोच बिल्कुल ठीक है कि विवाह में एक दूसरे को समझना एवं एक दूसरे के साथ रहने की इच्छा का होना अत्यंत आवश्यक है। लेकिन इसके साथ ही यह भी सोच अवश्य होनी चाहिए कि एक दूसरे के साथ हमें पूरा जीवन व्यतीत करना है, अपने प्रेम एवं स्नेह के प्रतीक बच्चे भी हमारे जीवन में आयेंगे जिनके जीवन को संवारने का काम हम अकेले नहीं कर सकते, उसके लिए समाज की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए हमारे सम्बन्धों को समाज एवं परिवार की स्वीकृति मिलनी भी अत्यंत आवश्यक है। ऐसा होने पर ही विवाह स्थाई मित्रता में परिवर्तित हो सकता है एवं उसके आधार पर हमारी शारीरिक- मानसिक-सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है। एक सफल वैवाहिक जीवन न केवल व्यक्ति बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सफल वैवाहिक जीवन ही एक व्यक्ति को अर्थ, काम, धर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति करवा सकता है। जो व्यक्ति अपना जीवन साथी चुनने में सफल नहीं है, वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता।

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