Friday, January 8, 2010

विवाह की सही उम्र क्या है?

वर्तमान समय में युवा पीढ़ी के साथ-साथ बहुत सीमा तक मां-बाप की भी यह सोच बन चुकी है कि युवक का विवाह कैरियर अपनाने एवं उसके जीवन की दिशा निर्धारित हो जाने के बाद ही किया जाना चाहिए। अब लड़कियां भी अपने कैरियर के प्रति जागरूक हो चुकी हैं, इसलिए वे भी नौकरी प्राप्त करने के बाद ही विवाह में रुचि प्रदर्शित करती हैं। मीडिया के प्रभाव एवं आधुनिकता के नाम पर आज वैवाहिक सम्बन्धों के निर्णय भी माता-पिता बच्चे की सहमति के बगैर लेने की स्थिति में नहीं हैं। परिणाम यह है कि कैरियर की ओर निश्चिंत होने के बाद बच्चे जब शादी करने का निर्णय करते हैं तब तक उनकी उम्र 30 वर्ष के ऊपर पहुँच चुकी होती है, जो नाना प्रकार की पारिवारिक समस्याओं का कारण बनती है।

महिला उद्यमिता के लिए सम्मानित हैदराबाद की उमा गोरखा एवं अमेरिका की थर्मरलाजिस्ट सीमा राठी कहती हैं कि आज युवा पीढ़ी 25 वर्ष तक शिक्षा ग्रहण करती है, 30 वर्ष तक किसी कैरियर का चयन करती है, 35 वर्ष तक कुछ धन अर्जित करती है, 40 वर्ष तक विवाह करती है एवं 45 वर्ष तक बच्चे पैदा करने का निर्णय करती है। परिणाम यह होता है कि वह न केवल अपने जीवन के आनंदपूर्ण क्षणों से वंचित हो जाती है वरन् अपनी आने वाली संतान के लिए भी संकट पैदा करती है। आजकल बहुत सारे पति-पत्नी संतान न होने के दुःख से दुःखी हैं एवं कृत्रिम गर्भाधान तथा अन्य प्रकार के इलाज के लिए विवश हैं क्योंकि शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो संतान सुख न प्राप्त करना चाहता हो।

वास्तव में बच्चों के पालन-पोषण के लिए मां-बाप में एक ऊर्जा एवं उल्लास की आवश्यकता होती है जो 25-35 वर्ष की उम्र में अपनी चरम सीमा पर होती है। इस उम्र में पैदा हुए बच्चे न केवल शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ होते हैं बल्कि उनकी परवरिश करने में भी मां-बाप को काफी आनन्द का अनुभव होता है। 25-35 वर्ष की उम्र में पैदा हुए बच्चों की शादी-विवाह सम्बन्धी जिम्मेदारियों से माता-पिता उचित समय पर मुक्त भी हो जाते हैं।

किशोरावस्था में विवाह का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि पति-पत्नी अपने आपको एक-दूसरे की पसंद एवं स्वभाव के अनुरूप परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं, इसके साथ ही बहू को भी अपनी ससुराल में समायोजित होने का पर्याप्त अवसर प्राप्त होता है। 20 से 30 वर्ष की आयु में विवाह होने से पति-पत्नी को कुछ समय तक वैवाहिक जीवन का आनंद लेने का अवसर प्राप्त होता है एवं बच्चे पैदा करने के लिए चार से पांच वर्ष तक का समय मिलता है। इसके विपरीत 30-40 वर्ष की आयु में विवाह करने के बाद अधिकांश नवविवाहित युगल एक वर्ष के अंदर ही माता-पिता बन कर जिम्मेदारियों से बंध जाते हैं।

जहां तक भारतीय संस्कृति का प्रश्न है तो उसमें भी 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य की बात की गई है। हालांकि हमारे देश में पहले 15-20 वर्ष की आयु में बच्चों का विवाह कर दिया जाता था लेकिन तब विवाहित युवती अधिकांश समय ससुराल की बजाय मायके में व्यतीत करती थी एवं 25 वर्ष की आयु के बाद ही उससे ससुराल पक्ष द्वारा संतान की आशा की जाती थी। इसका सबसे बड़ा लाभ यह था कि बच्चों को अनैतिक सम्बन्धों से बचाने में काफी मदद मिलती थी। इसके विपरीत यदि आप किसी युवक-युवती को 30-35 वर्ष की आयु तक अविवाहित रख कर उससे ब्रह्मचर्य व्रत एवं यौन सम्बन्धों में पवित्रता की आशा करते हैं तो ऐसा होना कठिन है। इसलिए सामाजिक जीवन मूल्यों एवं यौन सम्बन्धों में पवित्रता की दृष्टि से भी 20-30 वर्ष की आयु विवाह की सर्वश्रेष्ठ आयु कही जा सकती है। देश-विदेश की पत्रिकाओं द्वारा किए गए कई यौन सर्वेक्षणों से भी यह बात प्रमाणित होती है।

जहां तक कैरियर का सवाल है, तो यह सोच कि विवाह कैरियर निर्माण अथवा कैरियर के विकास में बाधा है, एक भ्रामक धारणा है। चाहे वह नौकरी की बात हो या व्यवसाय की, विवाहित पुरुष अथवा विवाहित नारी को सुरक्षा बोध रहता है एवं जीवन में कठिनाइयाँ आने पर वे एक-दूसरे के सहयोगी भी बन सकते हैं। कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि विवाह के बाद पति-पत्नी का कैरियर उन्हें एक.दूसरे से दूर रहकर जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य करता है। इसके विपरीत परिवार की स्थिति, बच्चों की परवरिश, परिवार के बुजुर्गां की देखभाल अपनी शिक्षा एवं रुचि के अनुरूप पति-पत्नी अपने कैरियर का चयन कर सकते हैं। प्रायः देखने को मिलता है कि परिवार की आवश्यकतानुसार अपने कैरियर में बदलाव करने के लिए पत्नी तैयार नहीं होती, जिससे न केवल परिवार बल्कि स्वयं पति-पत्नी के सम्बन्धों में भी तनाव उत्पन्न हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि विवाह किसी भी स्थिति में 30 वर्ष से अधिक उम्र में नहीं करना चाहिए।

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