Wednesday, March 17, 2010

क्या वास्तव में भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है??


भारत में इस बात को हम लोग प्रायः कहते, सुनते एवं पढ़ते रहते हैं कि भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है, प्राचीन है एवं महान है। लेकिन इस बात पर हम यकीन कम ही करते हैं। इसका प्रमाण यह है कि आज हमारी युवा पीढ़ी तेजी से पाचात्य जीवन मूल्यों को अपनाने के लिए बढ़ रही है। टी.वी. एवं मीडिया के माध्यम से भी यह बात प्रचारित-प्रसारित होती रहती है कि हमारे देश में जाति एवं धर्म व्यवस्था सामाजिक अन्याय एवं शोषण को बढ़ावा देने वाली रही है। शायद यही कारण है कि धर्म को सामाजिक जीवन में अनावश्यक मानते हुए हम धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार द्वारा भी जाति पर आधारित व्यवस्था को समाप्त करने के लिए भारतीय संविधान में जातीय आरक्षण की व्यवस्था की गई है। स्त्री-पुरुष के मुद्दे पर पत्र-पत्रिकाओं अखबारों एवं विभिन्न टी.वी. चैनलों में बहस जारी है। ऎसा माना जाता है कि भारत की नारी युगों-युगों से शोषित रही है। फिर किस आधार पर हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ, महान एवं प्राचीन है?? यदि भारत की वतर्मान राजनीतिक आथिर्क एवं सामाजिक स्थिति का अवलोकन करते हैं तो हमें स्थिति बहुत ज्यादा उत्साहजनक नजर नहीं आती है। चारों ओर भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता, अराजकता, अश्लीलता की पराकाष्ठा दिखाई देती है। तो क्या यह मान लेना चाहिए कि भारतीय संस्क्रति एवं जीवन मूल्य आधुनिक युग की परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं एवं हमें पाचात्य जीवन शैली को अपना लेना चाहिए। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सबसे पहले यह देख लेना चाहिए कि जिस पाश्चात्य शैली को हम अपनाने की कोशिश कर रहे हैं क्या वहां के लोगों के जीवन में शांति एवं आनन्द है?? आज भौतिक सुख-सुविधा, वैज्ञानिक अविष्कार एवं सामरिक शक्ति की दृष्टि से अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है लेकिन सबसे ज्यादा आत्महत्या, सबसे ज्यादा मानसिक अशांति वहीं है। यही कारण है कि जब भी कोई भारतीय आध्यात्मिक गुरु अमेरिका जाता है तो वहां उसको अपार लोकप्रियता प्राप्त होती है। स्वामी विवेकानंद, महऋिर्ष अरविन्द, ओशो, जैसे कई अध्यात्मिक गुरुओं ने पूरे अमेरिका में अपार लोकप्रियता प्राप्त की। इससे स्पष्ट होता है कि सुख-सुविधा के साधन मनुष्य को कभी भी जीवन में आनंद का अनुभव नहीं करवा सकते। उन्हें पाने के बाद भी मनुष्य की तलाश जारी रहती है। भारत की संस्क्रति महान इसलिए है कि वह मानव जीवन को साथर्कता प्रदान करती है। भारतीय संस्क्रति महान इसलिए है कि यहां जीवन को जीते हुए मनुष्य न केवल आथिर्क समृद्धि हासिल कर सकता है, बल्कि शांति एवं आनंद का भी अनुभव कर सकता है। भारतीय संस्क्रति की महानता इस बात में निहित है कि उसने जीवन को जीने का वैज्ञानिक आधार दिया। धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के रूप में मानव जीवन के चार उद्देश्य निधार्रित किए। भारतीय संस्क्रति की महानता इस बात से प्रमाणित होती है कि लम्बी गुलामी के बावजूद इसने अपने अस्तित्व को बचाये रखा। जहां तक आथिर्क समृद्धि की बात है तो उसका आकलन इस बात से किया जा सकता है कि जिस समय अंग्रेज भारत में आये उस समय भारत की प्रति व्यक्ति आय पूरे यूरोप से अधिक थी। भारत में उघोग एवं व्यापार समृद्ध थे इसलिए अंग्रेजों ने भारत में रहकर यहां की प्राक्रतिक सम्पदा का दोहन किया। भारतीय संस्क्रति की महानता इस बात में भी निहित है कि इसने कभी भी किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया। इसने कभी भी संग्रह करने वालों का सम्मान नहीं किया बल्कि त्याग करने वालों को सिर-आंखों पर बैठाया। भारतीय संस्कृति की महानता इस बात में है कि इसने हर युग एवं काल में दुनिया को रास्ता दिखाने वाले महापुरुष पैदा किये जिनका अनुकरण पूरी दुनिया ने किया। भगवान बुद्ध, महावीर एवं गांधी के विचारों से आज भी पूरी दुनिया प्रेरणा प्राप्त करती है। इसलिए वतर्मान पीढ़ी को भारतीय संस्कृति को नकारने से पूर्व इसके ५००० वर्ष पुराने इतिहास पर नजर डालनी चाहिए। जहां तक २oवीं सदी में अमेरिका एवं यूरोप जैसे देशों समृद्धि का प्रश्न है तो उनका उत्थान-पतन आज हम सबके सामने है। आज दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका एवं ब्रिटेन अपने ही बुने जाल में उलझा हुआ है। आतंकवाद एवं परमाणु बम के खतरे, जिनसे सारी दुनिया भयभीत है अमेरिका एवं ब्रिटेन की ही उपज हैं। अमेरिका एवं युरोप आथिर्क मंदी की चपेट हैं लेकिन भारत अपनी परंपराओं, अपनी संस्कृतियों के बूते अविचल खड़ा है। अमेरिका की पूंजीवादी अथर्व्यवस्था आथिर्क मंदी का शिकार हो चुकी है एवं वहां उदारीकरण के बाद सरकारीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। वास्तव में भारतीय संस्कृति की महानता पिछले ५००० वर्ष से प्रमाणित है जबकि पाश्चात्य संस्कृति का इतिहास २००० वर्ष पुराना है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि पाश्चात्य जीवन शैली में जो कुछ है वह गलत है। आवश्यकता इस बात की है कि भारत के परम्परागत जीवन मूल्यों एवं पाश्चात्य संस्कृति की कर्मठता के तालमेल से भारतीय युवा पीढ़ी अपने जीवन को संवारने का प्रयास करे।

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